मन कभी हँसता, कभी रोता, कभी गाने को करता,
इस मन की गहराई में कुछ जरूर ऐसा है जो ये हर पल,
भटकता रहता दिखावे के लिए हँस -हँस कर सबसे बातें करता,
पर अन्तर्मन से एक थकी हुई सी सांस लेता,
कभी बाज के पंजो में फंसी हुई चिड़िया-सा छटपटाता,
कभी चिंता और दुख की आँधी में फंस जाता,
मन की इस छटपटाहट को दूर करने के लिए,
जब एक आशा की धूमिल-सी किरण नज़र आती,
तब मन सारे दर्द भूल जाता,
मन की बगिया में हजारों रंग-बिरंगे फूल खिल जाते,
मन भोरों की गुनगुनाहट से भर जाता,
फिर अपनी निराशा को दूर करने के लिए,
एक नयी फूलों की बगिया सजाता...
- साधना
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