सूरज के निकलते ही एक माँ निकल पड़ती है,
अपने मासूम बच्चे की अंगुली थाम और,
एक नन्ही जान को पीठ पर बाँध मजदूरी करने के लिए।
वहीं कहीं सड़क किनारे एक कपड़े की झोली बना,
किलकारी भरती नन्ही जान को झोली में डाल,
दुलारती-पुचकारती झूला झूलाकर उसे बहलाती,
दिनभर तपती धूप में पसीना बहा बच्चों
के भविष्य के लिए धन कमाती।
साँझ ढलते ही लौट पड़ती अपने घरोंदे की तरफ,
फिर रात के अंधेरे सायों में देखती,
मासूम बच्चों के बेहतर जीवन के स्वप्न...
- साधना
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