Saturday, April 13, 2013

एक आस...


दरवाजे पर पुष्प लिए कब से खड़ी हूँ माँ,
तुम्हारे सुंदर सलोने मुखड़े की आस में,
तुम्हारी पायल की मधुर रुनझुन सुनने को,
माँ तुम सदा-सदा के लिए सुख-समृद्धि बरसाने को आ जाना,
मेरा आँचल जो मैं तुम्हारे सामने फैला कर खड़ी हूँ,
उसमें बसी हर आस को तुम्हें अर्पित करती हूँ,
तुम मेरी हर आशा को विश्वास के साथ उजव्वल व आभामय बना देना,
ताकि मेरा संसार और भी आभामय हो जाए।
- साधना

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