मन डूबता है, उतराता है, भागता है
सोचता है, फिर किसी झंझावात में
उलझ जाता है, कभी कुछ करना चाहता है
कभी फिर डूब जाता है
उलझनों को जितना सुलझाना चाहो
उतना ही ज्यादा उलझता जाता है
आशा की किरण नज़र आते ही
आशाओं की डोर टूट जाती है
मन, डूबते सूरज को देखकर कभी
डूब जाता है, और कभी नए सूरज के
उगने की आस में खुश हो जाता है
- साधना
Deep n nice Thoughts...
ReplyDeleteeagerly waiting for some more poems...!
Waah-waah...!!
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