Monday, April 27, 2015

अब जाग उठो...



अब जाग उठो धरावासियों, ये धरा तुम्हे पुकार रही,
पुकार रही प्रकृति, मिटा दो इस धरा से गन्दगी का साम्राज्य,
सौगंध उठा लो न रहने देंगे धरती पर गन्दगी, 
न काटेंगे वृक्ष, न उजाड़ेगे घने जंगल, ये बिन मौसम की बारिश, 
कड़कती हुई बिजुरिया,गमी में शीत लहर, 
कही दिल-दहलाने देने वाले भूकंप,
ये परिणाम है इस प्रकृति से मनमाने खिलवाड़ का,
प्रकृति ने सहनशील बन बहुत किया इंतज़ार कि शायद मानव सुधर जाये, 
प्रकृति उतारू है तोड़ने पर अब अपने ही बनाये नियम और बंधन,
अभी भी समय है तुम ना करो अत्याचार,
सुधार कर अपनी आदतें बचा लो 
अपनी आने वाली पीढ़ियों को प्रकृति के कहर से,
उन्हें दो सुन्दर अनमोल प्रकृति का उपहार… 

-साधना 

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