Friday, December 27, 2013

ओस की बूँदें...



कुहरे से भरी धुंधली सुबह में,
जब रक्तिम आभा से भरा सूरज निकलता,
तब ओस की नन्ही बूँदें पत्तों के किनारों पर,
मोतियों-सी सज जाती।
जगमगाती सुंदर मोतियों की लड़ी की तरह।
हवा के थपेड़ों को सहकर इधर-उधर,
लुढ़क कर अपने अस्तित्व को बचाती।
किसी उदास मन को जीवन का रहस्य समझाती
कि जब तक हमारा अस्तित्व है,
हमें जीवन की परेशानी को भूलकर ख़ुशी-ख़ुशी जीना होगा।

- साधना

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