Monday, December 2, 2013

पुण्य सलिला नर्मदा

Fast flowing river
अमरकंटक के घने जंगलों से,
पर्वतों से निकलते समय तक,
हे पुण्य सलिले नर्मदा,
तुम कितनी शांत और सौम्य होती हो,
धीरे-धीरे लहराती बलखाती,
चट्टानों से टकरा टकरा कर,
अपने पथ को विशाल बनाकर अपने चौड़े पाटों का विस्तार कर,
जन-जीवन की प्यास बुझा निर्झर हो झर-झर आगे बहती जाती,
कहीं धुँआधार का रूप धर लेती,
तो कभी सुन्दर मनोहारी घाटों की अनुपम शोभा बढ़ाती
तुम्हारी उपजाऊ कोख में न जाने कितने जीवन पलते,
जब घुमड़ घुमड़ काले बादल आते,
घनघोर घटाएँ जल बरसातीं,
तब विकराल रूप धर तुम न जाने गाँव,
शहर व प्राणियों को लील आगे बढ़ जातीं,
धीरे-धीरे तुम अशांत समुद्र में मिल गुम हो जातीं,
जहाँ तैरते अनगिनत जहाज...
                                                                           -- साधना 

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