
एक मीठी सी गंध से भर उठता था मन
जब पारिजात में सफ़ेद प्यारे से फूल लगते
छोटे-छोटे फूल जब हवा में इधर उधर उड़ते,
कभी-कभी धरती पे बिखर जाते
कभी तितलियों, मकड़ी, व नन्हें-नन्हें कीटों से घिर जाते
सूरज के डूबने पर निशा में अपनी छटा बिखराते
किसी निराश उदास मन को शांति पहुंचाते,
सूरज के आते ही शांत व उदार मन से झर जाते
सुबह भगवान के शीश पर गजरे बन सज जाते,
उसकी मीठी सी प्यारी सी सुगंध एक अनोखा एहसास जगाती
तब जिंदगी उमंग से भर जाती
- साधना
Quite a fragrant verse! : )
ReplyDeleteकाफी सुगंधित कविता है! : )