
सुनहरी गुनगुनी धूप में एक नन्ही सी गिलहरी
नाज़ुक सी, नर्म सी
कभी मुंडेर पर इधर-उधर भागती
कभी तार, कभी बगीचे, कभी मैदानों मे
फुदक कर, कूद कर भाग जाती
कभी नीम की डाली पर कूदती-फाँदती
कभी हाथ जोड़े दाने खाती
इस दुनिया की परेशानियों से अंजान
नीम की डाली पर अपना नीड़ बनाती
सुबह से खोज में लग जाती
कभी रुई कभी कपड़ों की कतरन
तो कभी धागे ढूंढ-ढूंढ कर लाती
फिर कुछ दिनों बाद अपने नन्हें बच्चों के लिए
दूर-दूर से दाना ढूंढ लाती
दुनिया भर की मुसीबतों से
कभी बाज, कभी बिल्ली से बचाती
जीवन की विषम कठनाइयों से बिना डरे
एक नन्ही सी गिलहरी अपने जीवन को
बिना किसी तनाव के
सहज, सरल, सुंदर ढंग से बिताती
-साधना
फोटो और कविता बहुत ही अच्छी है।
ReplyDeleteमज़ा आ गया...