
हे कान्हा! जब मन के सारे भाव डूब जाए,
मन की सारी आशाएँ कुम्हला जाए,
तब तुम दया के सागर बन आ जाना,
जब जीवन की सारी मधुरता मरुभूमि में बदलने लगे,
तो तुम मेघ बन जल बरसाना,
जब मन सांसारिक भावों में उलझ जाए,
तब तुम प्रभु शांति का भाव देने चले आना,
जब कोई मेरा अपना न हो,तब मेरे प्यारे प्रभु,
तुम अपने ह्रदय के समीप मुझे बुला लेना,
कान्हा! तुम मेरे जीवन के पथ प्रदर्शक बनकर,
मेरे जीवन रूपी रथ को पार लगा देना,
ताकि मुझे मोक्ष मिल सके व शांति- परमशांति...
मन की सारी आशाएँ कुम्हला जाए,
तब तुम दया के सागर बन आ जाना,
जब जीवन की सारी मधुरता मरुभूमि में बदलने लगे,
तो तुम मेघ बन जल बरसाना,
जब मन सांसारिक भावों में उलझ जाए,
तब तुम प्रभु शांति का भाव देने चले आना,
जब कोई मेरा अपना न हो,तब मेरे प्यारे प्रभु,
तुम अपने ह्रदय के समीप मुझे बुला लेना,
कान्हा! तुम मेरे जीवन के पथ प्रदर्शक बनकर,
मेरे जीवन रूपी रथ को पार लगा देना,
ताकि मुझे मोक्ष मिल सके व शांति- परमशांति...
-साधना
आपकी कविताएँ अधिकतर सरल हिन्दी में होती हैं। ये उनसे कुछ हट कर है।
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण અનન્યા!
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