
कौन कहता है कि
प्रलय का दिन आकर गुज़र गया
प्रलय आया भी तो ऐसे कि
सभ्य समाज की नींव हिल उठी
काँप उठी मानवता
वहशीपन व संस्कारहीन राक्षसों के कुकर्मों से
प्रलय का निशाना बनी एक नाज़ुक प्यारी सी बेटी
अचानक सभी बेटियों के माँ-बाप सहम गए
इस पुरुष प्रधान समाज में
स्त्री का वज़ूद खतरे में है
समाज को पालने वाली स्त्री ही
बेसहारा है, कमजोर है
पुरुषों के वर्चस्व वाले समाज में
स्त्री के वजूद को बचाना होगा
किसी नए प्रलय के आने से पहले
उसका हल निकालना होगा
हर रात के बाद सुबह आती है यही सोचकर
इस समाज को सोते से उठाना होगा
यह प्रलय फिर लौटने का दुस्साहस ना करे
इसीलिए हर स्त्री को तन-मन से सशक्त बनाना होगा
प्रलय का दिन आकर गुज़र गया
प्रलय आया भी तो ऐसे कि
सभ्य समाज की नींव हिल उठी
काँप उठी मानवता
वहशीपन व संस्कारहीन राक्षसों के कुकर्मों से
प्रलय का निशाना बनी एक नाज़ुक प्यारी सी बेटी
अचानक सभी बेटियों के माँ-बाप सहम गए
इस पुरुष प्रधान समाज में
स्त्री का वज़ूद खतरे में है
समाज को पालने वाली स्त्री ही
बेसहारा है, कमजोर है
पुरुषों के वर्चस्व वाले समाज में
स्त्री के वजूद को बचाना होगा
किसी नए प्रलय के आने से पहले
उसका हल निकालना होगा
हर रात के बाद सुबह आती है यही सोचकर
इस समाज को सोते से उठाना होगा
यह प्रलय फिर लौटने का दुस्साहस ना करे
इसीलिए हर स्त्री को तन-मन से सशक्त बनाना होगा
- साधना
अति उत्तम कविता...
ReplyDeleteदिल को छू लिया!!