Friday, December 28, 2012

प्रलय - १६ दिसम्बर २०१२

Candle Light
कौन कहता है कि
प्रलय का दिन आकर गुज़र गया
प्रलय आया भी तो ऐसे कि
सभ्य समाज की नींव हिल उठी
काँप उठी मानवता
वहशीपन व संस्कारहीन राक्षसों के कुकर्मों से
प्रलय का निशाना बनी एक नाज़ुक प्यारी सी बेटी
अचानक सभी बेटियों के माँ-बाप सहम गए
इस पुरुष प्रधान समाज में
स्त्री का वज़ूद खतरे में है
समाज को पालने वाली स्त्री ही
बेसहारा है, कमजोर है
पुरुषों के वर्चस्व वाले समाज में
स्त्री के वजूद को बचाना होगा
किसी नए प्रलय के आने से पहले
उसका हल निकालना होगा
हर रात के बाद सुबह आती है यही सोचकर
इस समाज को सोते से उठाना होगा
यह प्रलय फिर लौटने का दुस्साहस ना करे
इसीलिए हर स्त्री को तन-मन से सशक्त बनाना होगा
- साधना

1 comment:

  1. अति उत्तम कविता...
    दिल को छू लिया!!

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