
कान्हा!
तुम्हारी बांसुरी के स्वर में
निशिगंधा, पारिजात, चमेली सा मीठा सुगंधित स्वर है
ठंडी, लहराती मुक्त पवन सा मोहक व मादक स्वर है
भ्रमरों की मस्त, फक्कड़ सी गुनगुनाहट है
पत्तियों की सरसराहट से उत्पन्न होने वाला स्वर है
अनंत से उठने वाले स्वरों की गूंज है
तुम्हारी बांसुरी के स्वर मेरे जीवन को
उमंग व उल्लास से भर देते हैं
मेरे मन में नई उम्मीदों का संचार करते हैं
सारी तृष्णाओं को मिटाकर
सारे बैर-भाव मिटाकर
नवजीवन की ओर
अनंत के कठिन पथ पर अग्रसर कर
जीवन की हर राह को सरल बना देते हैं
तुम्हारी बांसुरी के स्वर में
निशिगंधा, पारिजात, चमेली सा मीठा सुगंधित स्वर है
ठंडी, लहराती मुक्त पवन सा मोहक व मादक स्वर है
भ्रमरों की मस्त, फक्कड़ सी गुनगुनाहट है
पत्तियों की सरसराहट से उत्पन्न होने वाला स्वर है
अनंत से उठने वाले स्वरों की गूंज है
तुम्हारी बांसुरी के स्वर मेरे जीवन को
उमंग व उल्लास से भर देते हैं
मेरे मन में नई उम्मीदों का संचार करते हैं
सारी तृष्णाओं को मिटाकर
सारे बैर-भाव मिटाकर
नवजीवन की ओर
अनंत के कठिन पथ पर अग्रसर कर
जीवन की हर राह को सरल बना देते हैं
- साधना
जय श्री कृष्ण! श्री कृष्णम् शरणम् मम्।
ReplyDelete