Sunday, December 30, 2012

एक पत्र...

30.01.2012 - Letters
दामिनी,
         तुम आखिर हमारा साथ छोड़ चली गई। तुम्हारी इतनी यातनाओं के बाद भी जीने की इच्छा थी क्योंकि तुम्हारे अवचेतन मन में माता-पिता का प्यार जो था। तुम उनकी व इस समाज की सेवा करना चाहती थी।  जिन ममता भरे हाथों ने तुम्हें थपकियाँ देकर प्यार से चूमकर सुलाया था। तुम्हारी नन्ही हथेलियों को पकड़ कर चलना सिखाया था। हर पल तुम्हारे उज्ज्वल भविष्य के सपने देखे थे। उन्ही पलों को याद कर तुम जीना चाहती थीं। पर इस समाज में पल रहे वहशी दरिंदों ने उन सारे सपनों को चकनाचूर कर दिया। तुम मौत से अपनी ज़ंग हार गईं। पर शायद तुम्हारी हारी हुई ज़ंग ने समाज के अवचेतन मन को जगा दिया। शायद तुम्हारी यही बुलंद आवाज़ इस समाज से वहशीपन, दरिंदगी को मिटा सके। हर कुकर्मी को उसके पापों की सज़ा दिला सके ताकि फिर किसी माता-पिता से उनकी लाड़ली बिछड़ने ना पाये। तुम्हारा मौन भी मुखर हो हर व्यक्ति की आवाज़ बन जाये, यही कामना है।
- साधना

1 comment: