Tuesday, December 18, 2012

नारी

Devi Durga
नारी तुम शक्ति हो,
घर में हो तो गृहलक्ष्मी, धर्मपत्नी कहलाती हो
संतान की जननी होने से माँ कहलाती हो

कहीं पुत्री, कहीं बहू,
अनंत रूपों को धारण कर
तुम परिवार को, इस संसार को चलाती हो
माँ स्वरूप में अपने बच्चों के
हर क्षेत्र में आगे बढ़ने की कामना करती हो
सुख-दुख मे उनके साथ रहती हो सदा
संस्कार देकर अच्छे उन्हे सदाचार सिखाती हो

परिवार पर कोई कष्ट न आए इसलिए
पूजा, प्रार्थना, व्रत, उपवास कर
हर अनिष्ट को दूर रखना चाहती हो
तन से भले ही थक जाओ
पर मन से सशक्त हो
परिवार की हर ज़रूरत पूरी करती हो
इस सब पर भी इस कलयुग में
अपयश और अपमान ही तुम्हारे हिस्से आता है
कहने को सबकुछ तुम्हारा होता है
फिर भी तुम सदा खाली हाथ रहती हो
इस समाज से प्रार्थना है मेरी
वे नारी का अपमान ना करें
क्योंकि नारी तुम ही तो
दुर्गा, राधा, लक्ष्मी का रूप हो

- साधना

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