Wednesday, December 26, 2012

इंसानियत

Atada - Tied
सूरज के ढलते ही सड़कों पर स्याह अंधेरा फैल जाता है,
उस अंधेरे में कुछ अजनबी, अटपटे से चेहरे नज़र आते है,
उन अजनबी चेहरों को देख मन संशय में डूब जाता है,
लगता है वो शख्स बुरी भावनाओं से हुमें देख रहा है,
फिर मन कहता है ऐसा नहीं हो सकता,
पर मन सोचने पर मजबूर हो जाता है,
वर्तमान में इंसानियत बची ही कहा हैं?
कब एक सभ्य इंसान हैवान में बदल जाये ये तय नहीं,
इन स्याह अँधेरों से हर इंसान परेशान है,
घर से हँसती-मुसकुरा कर निकली हुई बेटी
क्या सूरज ढलने के बाद सुरक्षित अपने घर को लौट पाएगी?
मन कहता है नहीं, क्योंकि इंसान पर वहशीपन सवार है,
वर्तमान में हमारा विश्वास ही विश्वासघात में बदलने को मजबूर है।
- साधना

2 comments:

  1. वाह!
    क्या लिखा हैं,शानदार...

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  2. मुझे आखिरी लाइन समझ नहीं आई... :|
    विश्वास ही विश्वासघात में बदलने को मजबूर है??... मतलब??
    Pls explain.

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