Thursday, January 3, 2013

मर्ज़ी का अंत

Macro Dried Leaf
एक वृक्ष की शाखा से एक सूखा कमजोर पत्ता गिरा
अचानक हवा चली, पत्ता धूल में लिपटकर तेजी से उड़ा
उसे देख पुरानी हवेली के मेहराब, झरोखे हँसने लगे
बोले हम सदियों से यही खड़े हैं
सूरज, चाँद, सितारे हमारे स्थायी होने के साक्षी हैं
तू तो निरीह व कमज़ोर है, जाने कहाँ उड़ जाएगा
सूखा पत्ता हवा मे अठखेलियाँ कर खूब उड़ा
उसने कहा विनाश तो नीश्चित है
पर विनाश से पहले खुश होकर सबसे मिलकर खूब उड़ूँगा
अपनी आकांक्षाओं को पूरा कर अपने अंत से मिलूंगा
अंत समय में तुम मुझे ज़रूर याद करना
जब तुम खंड-खंड हो बड़ी मुश्किलों से टूट पाओगे
तब विचार करना कि तुम्हारा सदियों का स्थायित्व सही है
या अपनी मर्ज़ी का अंत?
- साधना

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