
मन के विचार गतिशील नदिया से बहते जाते,
कभी इस पार तो कभी उस पार टकराते,
कभी मझधार में डूबकर वही रुक जाते,
कभी शांत भाव से धीमे-धीमे बह जाते,
अचानक विचारों की बाढ़ आने पर प्रलय ले आते,
कभी गहनता में डूबकर नदी के तल में डूब सहज हो जाते,
कभी छोटी-छोटी मछलियों की तरह चंचल हो जाते,
कभी किसी गंभीर समस्या के कारण
विशाल मगरमच्छ की तरह मुंह फाड़ कर परेशान करते,
कभी नदी किनारे खड़े बगुले की तरह
समाधि लगा स्थिरभाव हो जाते,
मन के विचारों को सही जगह पर गतिशील करना होगा
ताकि जीवन की नैया सहजता से पार हो जाये
कभी इस पार तो कभी उस पार टकराते,
कभी मझधार में डूबकर वही रुक जाते,
कभी शांत भाव से धीमे-धीमे बह जाते,
अचानक विचारों की बाढ़ आने पर प्रलय ले आते,
कभी गहनता में डूबकर नदी के तल में डूब सहज हो जाते,
कभी छोटी-छोटी मछलियों की तरह चंचल हो जाते,
कभी किसी गंभीर समस्या के कारण
विशाल मगरमच्छ की तरह मुंह फाड़ कर परेशान करते,
कभी नदी किनारे खड़े बगुले की तरह
समाधि लगा स्थिरभाव हो जाते,
मन के विचारों को सही जगह पर गतिशील करना होगा
ताकि जीवन की नैया सहजता से पार हो जाये
- साधना
No comments:
Post a Comment