Friday, January 25, 2013

नीतिकथा (कौवा और मोर के पंख)

   एक कौवा था उसे एक जगह बहुत से मोर के पंख पड़े हुए मिले। कौवे ने सोचा- मैं इन मोर पंखों को अपने पंखों पर लगा लूँ, तो मैं भी मोर के समान सुंदर दिखने लगूँगा। यह सोचकर उसने मोरपंखों को अपने पंखों पर लगा लिया और अन्य कौवों के पास जाकर कहने लगा- तुम लोग बड़े नीच और कुरूप हो, अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा। यह कहकर मोरों की टोली में सम्मिलित होने चला गया। 
मोरों ने उसे देखते ही पहचान लिया और सभी मोरों ने उसके मोर पंख निकाल दिये और उस पर प्रहार करने लगे। कौवे ने भागकर अपनी जान बचाई और फिर कौवों की टोली में शामिल होने चला गया। ठीक उसी तरह कौवों ने भी उसे अपमानित किया और कहा- तू बड़ा नीच और निर्लज्ज है, तूने हमें अपमानित किया। अब तू यहाँ से भी भाग जा और इस तरह उस मूर्ख कौवे को सभी कौवों ने भगा दिया।
   इसलिए दूसरों की नकल का प्रयास छोड़कर अपने गुण-अवगुण जानकर मर्यादा में रहे तो किसी से भी अपमानित नहीं होना पड़ता।



-(संत ईसप की नीतिकथाओं से प्रस्तुत)

1 comment:

  1. क्या बात! क्या बात!! क्या बात!!! : )

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