Tuesday, January 22, 2013

पतंग

the girl, the kite
पतंग को उड़ता देख मन उड़ना चाहता था,
अनंत की ऊँचाइयों को छूना चाहता था,
मैंने माँ से पूछा- मैं उड़ना चाहती हूँ पतंग की तरह,
माँ ने कहा- पतंग की ऊँचाई एक नाज़ुक सी डोर से बंधी है,
जिसे काटने के लिए बहुत से लोग खड़े हैं,
माँ से मैंने कहा- तुम नहीं चाहती ऊँचाइयों को छूना,
उन्होनें मना किया कहा मेरी ऊँचाइयाँ,
मेरा घर-आँगन और परिवार हैं, बाहर काँटों से भरा संसार है, 
पर मेरा मन नहीं माना क्योंकि जब मैं छोटी थी,
और रोती थी तब माँ आसमान में उड़ती पतंगें व
परिंदों को दिखाकर मुझे चुप करती थी,
उसी वक़्त से मेरा मन उड़ना चाहता था, 
हर कामयाबी को हासिल करना चाहता था
एक दिन मैंने सपनों में बहुत सी रंग-बिरंगी पतंगें उड़ती देखी,
उन्होनें पूछा- तुम भी हमारे साथ हवा में उड़ोगी,
मैंने हामी भर दी पर जब आँखें खुली तो मैं ज़मी पर थी।
- साधना

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