
बसंत की आहट पाते ही नन्हे पक्षी प्रवास से लौट आए,
कभी पेड़ों पर कभी झड़ियों में कभी बिजली के तारों पर,
कतार लगा मीठे-मीठे स्वर में मन को लुभाने लगे,
पेड़ों पर नए नीड़ बनाने लगे,आकाश में उड़ान भर-भर के,
नए तरीकों से अपना आशियाना बनाने लगे,
नर्म-नर्म रोओं से भरे अपने बच्चों को,
दूर-दूर से ला भोजन करा उन्हें उड़ना सिखाने लगे,
कुछ नन्हे पंछी उड़ान भरना सीखने लगे,
तभी अचानक एक आँधी सी आई,
टूट गए सारे स्वप्न बिखर गया नीड़,
नन्हें-नन्हें पंखों से ढके बच्चे जमीन पर गिर बेसहारा हो गए,
उड़ गए प्रवासी पक्षी फिर लौट कर आने के लिए।
- साधना
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