Wednesday, December 17, 2014

जगत जननी


हे जगत जननी तुम शक्ति हो
शिव के साथ मिल तुम और भी शक्तिशाली हो जाती हो
तुम्हारे हज़ारों हाथ हैं, तुमसे विनम्र विनती है
मुझे मेरे दो हाथों के अतिरिक्त और दो हाथ प्रदान कर दो
क्योंकि, मैं लगन से काम करने के बाद भी किसी भी कार्य में पूर्णता प्राप्त न कर सकी
थक चुकी हूँ, चारों और असंतुष्ट चेहरे नज़र आते हैं
मैं संतुष्ट देखना चाहती हूँ हर चेहरे को
मैं सभी निःशक्त-जनो, जरुरतमंदो की मदद करना चाहती हूँ
और पूर्णता को प्राप्त कर अपने जीवन को सफल बना
समर्पित करना चाहती हूँ, तुम्हारे चरणों में...

 - साधना

Tuesday, December 9, 2014

उम्र का एहसास...












बेहद सर्द दिनों में एक बूढ़ा बैठ कर दालान में बीड़ी का धुँआ उड़ाते हुए
उदास मन से देखता था कभी इधर -कभी उधर
वह कर रहा था, बादलों से सूरज के निकलने का इंतजार
सूरज निकला पर पहुँच चुका था धीरे -धीरे पश्चिम की ओर
गुनगुनी धूप के मखमली एहसास को पाकर
मन में कुछ गर्मी का अहसास हुआ
पर ढलते हुए सूरज को देख
मन में अपनी ढलती हुई उम्र का भी अहसास हुआ और
वह असहाय सा तकता हुआ रह गया
सिर्फ बीड़ी से उठता धुँआ....
- साधना 

Tuesday, December 2, 2014

जिंदगी...














सोचा न था जिंदगी इतनी उलझनों से भरी होगी
हर कदम पर मुसीबतें होंगी 
अपनों से इतने गम मिलेगें कि दुश्मनों की जरुरत ही न होगी
जिंदगी का हर लम्हा डर के साए से होकर गुजरता है,
न जाने किस मोड़ पर जिंदगी डगमगा जाये
और कोई अपना दूर तक नज़र न आये
दर्द के सायों में गुम हो ये जिंदगी,
ऐसे ही एक दिन हमेशा के लिए गुजर जाए...
- साधना 

Thursday, November 13, 2014

तमस से भरी रात













तमस से भरी, लम्बी रात के बीत जाने के बाद 
सृष्टि करती लालिमा से भरे सूर्य के उदय होने का इंतजार 
नन्ही बुलबुल, अलसाते पशु-पक्षी, विशाल वृक्ष,
नाजुक लताएँ तकती रहती सूर्य की और,
सूर्य कुछ अनमना हो निकल पड़ता 
बादलों की ओट से फिर धीरे-धीरे धधकती अग्नि का गोला बन 
चारों और फैला देता नवजीवन का प्रकाश 
पर आकाश में सूर्य सदा अकेला अनमना सा रहता 
उसके धधकते मन में सदा बना रहता गहन अंधकार 
- साधना 

Sunday, October 26, 2014

ऐ माटी के नन्हें दीप...












अमावस के काले अंधकार को दूर करने के लिए,
ऐ माटी के नन्हें दीप तू जगमग-जगमग जल,
नन्ही-सी बाती संग नेह का तेल लिए तू जगमग-जगमग जल,
हर अन्तर्मन में कर प्रकाश, 
दूर कर हर जीवन से अज्ञान अभाव तू जगमग-जगमग जल, 
हर अज्ञानी मूढ्मति मानव के जीवन को प्रकाशित कर उसका पथ प्रदर्शन,
तमस मिटा हर जीवन से आलोकित कर बिखरा ज्योति-किरणे,
जगमग-जगमग उजियारे की हर सीढ़ी पर चल कर प्रकाशित मानव जीवन,             तू भूला पुरानी परेशानियाँ सब संग हिलमिल दिखा सतरंगी सपने...
- साधना

Thursday, October 2, 2014

स्त्रियाँ




भोर के सूरज की लालिमा से चुरा कर लाल मोहक रंग 
एक स्त्री भर लेती अपनी माँग में 
और भर जाती एक नयी उमंग उत्साह और स्फूर्ति से 
हर दिन माथे पर बड़ी सी बिंदी,
हाथों में रंग-बिरंगी खनखनाती चूड़ियाँ, 
गले में मंगलसूत्र ,पैरों में रुनझुन करती पायल-बिछिया 
संपूर्ण श्रृंगार में डूब भूल जाती सारे दुःख-दर्द 
पूर्ण रूप से परिवार के लिए समर्पित होने के बाद भी 
अधिकतर उपेक्षा, अपमान का शिकार होती स्त्रियाँ 
फिर भी, सारे गिले-शिकवे भूल 
हर सुबह सूरज की लालिमा से चुरा कर लाल रंग 
नयी आशा का दामन थाम 
माँग भर लेती स्त्रियाँ... 
- साधना 

Wednesday, September 3, 2014

सावन की घटाएँ...


सावन की घटाओं से घिरे बादलों से झरते पानी में
लोक गीत गुनगुनाती औरतें, धान के खेतों में
झुक कर परहा लगाती, रंग-बिरंगी घुटनों तक लिपटी साड़ियों में
मिटटी से सने हाथों से धान रोपती, साँझ ढलने पर चूल्हे से जूझ
खाना पकाती, घर परिवार की हर जरुरत को पूरा करती
फिर थक कर सोते वक्त देखती सोने के दानों से भरी
सुनहरी लहलहाती फसलों के स्वप्न... 
- साधना 

Saturday, August 9, 2014

नन्हा-सा घर...















रोजगार की तलाश में गाँव से शहर आये हुए लोग सड़क किनारे,
नीले गगन के तले रंग-बिरंगे प्लास्टिक व बाँस-बल्ली के सहारे 
बनाते एक नन्हा-सा घर...
नन्हा-सा ही सही पर घर को
सुविधा युक्त बनाने की कोशिश होती उनकी, 
भीषण गर्मी में बल्ली के सहारे लटका पंखा, 
गैस चूल्हा, छोटा सा टीवी 
नन्हा-सा घर आबाद रहता खिलखिलाते खेलते बच्चों से... 
आशा, उम्मीद, प्यार व परस्पर विश्वास के सहारे 
गुलजार रहता उनका घर 
उन्हें न भविष्य की चिंता, न चोरी का डर, 
न ही घर के टूटने का डर यदि तोड़ भी दिया गया 
तो फिर नई जगह पर उसी हौसलें के साथ 
उम्मीदों का दामन थामे सड़क किनारे 
वे फिर बना लेगें अपना एक नया घर...  
- साधना 

Saturday, July 19, 2014

चंचल मन...

























ए चंचल मन तू स्थिर हो जगा ऐसा भाव मन में,
मैं स्वयं प्रभु रंग में रंग जाऊँ
प्रभु का नाम जप मैं स्वयं शिव हो जाऊँ,
सहजता बस जाये मेरे जीवन में
और मैं स्वयं सहज रूप से शिव हो जाऊँ
भूल माया मोह का बंधन,
भूल तमस को माया मोह के
अथाह सागर से सहज रूप से पार हो जाऊँ
इन्द्रियों की चाहना को भूल परमात्मा के प्रेम रंग में सदा के लिए रंग जाऊँ...
- साधना 

Thursday, June 19, 2014

प्रवासी पक्षी















 प्रवासी पक्षी ,रुको अभी न जाओ छोड़कर क्योंकि मैं तुमसे बात करना चाहती हूँ
जानना चाहती एक राज कि तुम बिना थके कैसे तय करते हो इतने लम्बे फासले
मैं तुम्हें दिखाना चाहती हूँ मेरे रेत से बने घर ,कलकल बहती नदी ,पुरानी पगडण्डी
जिन पर चल कर हर भूला -भटका थका-हारा राही घर पहुँचता है
तुम्हें अनेकों शुभकामनाओं के साथ बिदा कर ,चाहती हूँ तुमसे एक वचन
अगली बार तुम मुझसे मिलने जरुर आओगे तब फिर हम तुम होंगें
एक साथ इस मुक्त गगन के तले...
- साधना 

Thursday, June 5, 2014

प्यारी कोयल

























एक प्यारी काली कोयल जो है तन से काली पर वाणी से मधुर -मधुर
मचा रही आम की घनी डालियों के इर्द-गिर्द कुहू -कुहू का शोर 
अचानक चुप हो कर जागती सबके मन में विस्मय 
सबकी निगाहें ढूंढती उसे
चंहुँ और छोटे -छोटे बच्चे व्याकुल हो
मचाने लगते कुहू-कुहू का शोर 
सयानी कोयल डालियों पर फुदक -फुदक कर लेती छुपने का मजा 
फिर मौन तोड़कर सुनाती नयी अदाओं से
इठला -इठला कर अपना नया तराना,
मोह लेती सबके मन को अपनी मोहक आवाज से 
और सभी डूब जाते कुहू-कुहू के मस्त राग में 
- साधना 

Sunday, May 25, 2014

जेठ की तपती दोपहर...

















जेठ की तपती दोपहर में सूरज की किरणें,
प्रचंड रूप धर झुलसा रही जन -जीवन को,
गर्म हवाएँ उड़ा रही धूल और बवंडर,
पृथ्वी के गर्भ में छुपी अनंत ऊष्मा परिणीत हो,
गुलमोहर और अमलतास के चटख रंगो से,
कर रही प्रकृति का मनभावन श्रृंगार।
पशु -पक्षी हाँफ रहे ,नन्ही चिरैया कांप रही
न दाना न पानी दिखता, न नदी न तालाब,
सारा दिन घर भट्टी सा तपता ,कोई न घर के बाहर दिखता
दिन भर की तपन के बाद रातें भी बैचैन करती
पर धीरे-धीरे चन्द्रमा की शीतल किरणें,
दिलाती तपते तन-मन को शीतलता का अहसास...
- साधना 

Sunday, May 11, 2014

माँ प्यार तुम्हारा

Manon et Maman

माँ प्यार तुम्हारा निर्मल जलधारा ,कलकल कर बहता जाता 
मेरे जीवन की सारी नीरवता और विषाद को अपने 
संग ले कलकल बहता जाता 
सावन की मस्त फुहारों सा मेरे तन-मन को भिगो जाता 
माँ प्यार तुम्हारा मधुर-मधुर 
तपती धूप में ठंडक पहुँचता 
माँ प्यार तुम्हारा चंदा की निर्मल चाँदनी सा 
थके हुए मन को शांति का एहसास दिलाता 
माँ प्यार तुम्हारा शक्ति बन जीवित होने का एहसास 
दिला सत्य की राह पर चलना सिखलाता 

- साधना 

Thursday, May 1, 2014

कारीगरी के शहंशाह


जब भी सुबह-सुबह उस रास्ते से गुजरती,
बहुत सारे श्रमिक शेड के आसपास नज़र आते,
श्रमिकों के झुण्ड, जो काम मिलने की आशा लिए,
जमा हो जाते गलियों, चौराहों पर,
कभी बतियाते, कभी गुमसुम से नज़र आते। 
मन ही मन सोचते ये गलियाँ चौराहे सदा रौशन रहें, 
ताकि उनका जीवन व रोजी-रोटी चलती रहे। 
वे हर तरह के काम को करने को आतुर होते,
किन्तु ऐसे ही लोगों में कुछ लोग होते बहुत ही हुनरमंद,
क्योंकि उनकी मेहनत छैनी हथोड़ी करनी के भरोसे होती है,
गज़ब की कारीगरी और वे ही होते हैं, 
अनोखी कारीगरी के शहंशाह!!
                                       - साधना 

Friday, April 25, 2014

दिन ढलने लगा...


















दिन ढलने लगा सूर्यदेव पधारे अस्ताचल को,
शंख की ध्वनि से साँझ का आगमन हुआ,
दमक उठे घर आँगन , तुलसी चौरे पावन दीप के प्रकाश से
पवित्र घण्टियों का नाद हुआ,
उठ गए माँ के पवित्र हाथ विनती के लिए
मद्धम स्वर में प्रार्थना गूंज उठी
हे ,संझा मइया सबका भला करना
हर घर व सारे संसार में सदा सुख-शांति बनाए रखना...
- साधना 

Thursday, April 17, 2014

माँ की यादें


















photo taken from: Francois Bester's Flickr Photostream

शांत नीरव निस्तब्ध लम्बी रातों में 
सन्नाटों को चीरती
निशाचर पक्षियों कि चीखती आवाज़ें 
कुत्तों का सस्वर करुण रुदन
एक बूढ़ी माँ के मन को उद्वेलित कर जाता,
बोझिल मन विचारों की दुनिया में खो जाता,
मन की कई खिडकियाँ खुलती-बंद होती रहती 
मन के झरोखों में बंद यादें
आँखों के आगे तैर जाती 
जीवन में बिताए हुए सुख-दुःख के पल याद आते 
आँखों में नीर भर आता 
इन्हीं बीती यादों के सहारे बिताती माँ ,
माँ की ममता को भूल चुके बच्चों से
दूर रह कर अपना शेष जीवन
- साधना 

Wednesday, March 19, 2014

खुशी
















Photo taken from: Dhinakaran Gajavarathan's Flickr Photostream

जीवन मे हर पल गमों को
भूलने के लिए भटकते रहे
खुशियाँ ढूंढते रहे
पर खुशियाँ नहीं मिली
परेशान होकर तब पलकें मूंदकर
हम बैठ गए वीराने में
जब चिड़ियों के कलरव से हम जागे
खुशियाँ थी चारों तरफ
सूरज की किरणों में,
चंद्रमा की चाँदनी में,
ठंडी-ठंडी बयार में,
कोयल की कूक में,
ठंडे शीतल जल में,
मयूर के कलात्मक नृत्य में,
चारों तरफ आनंद ही आनंद था,
और हर कोई अपनी-अपनी
तकलीफ़ों को भुला कर
तरह-तरह से खुशियाँ बिखेर,
खुश हो रहा था...
- साधना

Monday, March 17, 2014

रंग उड़ाती
















रंग उड़ाती, मन को बहलाती
सारे जग को अपने रंग में रंगने होली आई
नीले-पीले, हरे-गुलाबी
कच्चे-पक्के रंगो से भिगोने आई
फागुन के इस रंग में डूबा
टेसू पहन केसरिया बाना
आ धमका प्रकृति को रंगने अपने रंग में
चुलबुल बुलबुल नए राग सुना
सबको खुशियों से भिगोने आई
भूल कर सारे गिले शिकवे
सद्भावनाओं के रंग में रंगने
रंग -बिरंगी होली आई
शोर मचाती, हुल्लड़ करती
मस्तानो कि टोली आई
रंग उड़ाती, मन को बहलाती
रंग-बिरंगी होली आई....
- साधना 

Sunday, March 16, 2014

रंगों का त्यौहार - होली



















बसंतपंचमी के आते ही प्रकृति में एक नवीन परिवर्तन आने लगता है। दिन बड़े होने लगते हैं, जाड़ा कम होने लगता है और पतझड़ शुरू हो जाता है। माघ पूर्णिमा को होली का डांडा गाड़ा जाता है। आम कि मंजरियों पर भौरें मँडराने लगते हैं, वृक्षों में नई  कोपलें फूटने लगती है, और चारों ओर एक नवीनता का अहसास होने लगता है। ऐसे समय पर मनाया जाता है नई उमंग के साथ, रंगों का त्यौहार होली।

होली एक सामाजिक एवं धार्मिक त्यौहार के साथ-साथ रंगों का भी त्यौहार है। इस अवसर पर लकड़ी और कंडों का ढेर लगा कर होलिकापूजन किया जाता है फिर उसे जलाया जाता है। इस पर्व को नवान्नेष्टि यज्ञ भी कहा जाता है। खेत से नए अनाज को लाकर होली कि आग में भूनकर प्रसाद के रूप में दिया जाता है, इस अन्न को होला कहते है।

हिरण्यकश्यपु की बहिन होलिका को वरदान मिला था कि उस पर अग्नि का कोई प्रभाव नहीं होगा। अतः वह विष्णुभक्त प्रह्लाद का अंत करने के विचार से उन्हें गोद में लेकर अग्नि के बीच में बैठ गई पर भगवान की कृपा से प्रह्लाद बच गए और होलिका का अंत हुआ। तभी से त्यौहार मनाने की प्रथा चल पड़ी।

होली एक आनंद और उल्लास का पर्व है। यह सम्मिलन, मित्रता व एकता का पर्व है। इस दिन सभी द्वेषभाव भूलकर सबसे प्रेम और भाईचारे से मिलते है। एकता ,सद्भावना एवं भाईचारा बनाये रखना इस त्यौहार का मूल उद्देश्य एवं संदेश है।

इस दिन अबीर -गुलाल लगा कर सभी एक दूसरे से गले मिलते है। कुछ लोग कीचड़ ,गोबर, मिटटी का प्रयोग कर के एक दूसरे के ह्रदय को चोट पहुचातें है। अतः इन सब का त्याग करना चाहिए। इस दिन आम कि मंजरी और चन्दन को मिला कर खाने का माहात्म्य है। जो लोग फागुन कि पूर्णिमा को हिंडोले में झूलते हुए भगवान के दर्शन करते है ,वे बैकुंठलोक में निवास करते है। अतः हम सभी को पूरे उल्लास व उमंग के साथ इस रंगों से भरे त्यौहार को मनाना चाहिए।
- साधना

Saturday, March 8, 2014

जीवन के दोहरे मापदंड






















जीवन के दोहरे मापदंडों के कारण
नारी अशक्त है 
पुरुष और नारी के लिए
समाज ने अलग-अलग नियम बना
पुरुष को दिया खुला आकाश
और नारी को घुटन भरा जीवन 
पुरुष को हर अपराध माफ़
और नारी को नियम,नीति व संस्कारों का बंधन 
इसीलिए पुरुष अपनी पराकाष्ठाओं को पार कर जाता 
नारी लोकलाज के डर से
सिमट कर कशमकश में डूब जाती 
इन दोहरे मापदंडों को
भूल एक नया मापदंड अपनाना होगा 
ताकि सदियों से चले आ रहे
दोहरे मापदंडों की उलझनों से निकल
हर नारी को मान -सम्मान का जीवन मिल सके
- साधना 

Wednesday, February 26, 2014

महाशिवरात्रि -महोत्सव















        शिवरात्रि का अर्थ है वह रात्रि जो शिव को अतिप्रिय हो, फ़ागुन कृष्णपक्ष की चतुर्दशी शिवरात्रि कहलाती है। भगवन शिव की पूजा, जागरण और शिवाभिषेक इस व्रत की विशेषता है। चतुर्दशी के तिथि में चन्द्रमा, सूर्य के समीप रहता है। इसी समय जीवन रूपी चन्द्रमा का शिव रूपी सूर्य के साथ योग मिलन होता है। अतः इस चतुर्दशी को शिवपूजा करने से जीवन में अभीष्ट फल प्राप्त होता है।

भगवान शिव संहार और तमोगुण के देवता है। रात्रि संहार काल की प्रतीक है, उसका प्रवेश होते ही हमारी दैनिक क्रियाओं का अन्त हो जाता है और संपूर्ण विश्व निंद्रा में लीन हो जाता है।

शिवरात्रि का कृष्ण पक्ष में होना साभिप्राय ही है। शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा सबल होता है कृष्ण पक्ष में क्षीण। चन्द्रमा के सबल होने पर संसार के सभी रसवान पदार्थों में वृद्धि होती है और क्षय के साथ क्षीणता आती है। सूर्य कि शक्ति से तामसी शक्तियाँ अपना प्रभाव नहीं दिखा पाती हैं, किन्तु चतुर्दशी की अंधकार से भरी रात्रि में वे अपना प्रभाव दिखाने लगती हैं। सभी तामसी वृत्ति के अधिष्ठाता भगवान शिव हैं, इन्हीं तामसी वृत्तियों के प्रभाव को नष्ट करने के लिए चतुर्दशी को शिवाराधना की जाती है। अध्यात्मिक कार्यों में उपवास करना जरुरी माना  गया है। उपवास से ही मन पर नियंत्रण रख कर रात्री जागरण किया जाता है और ॐ नमः शिवाय का जाप किया जाता है।

भगवान शिव अर्धनारीश्वर होकर भी काम विजेता है, गृहस्थ होते हुए भी परम विरक्त है, हलाहल विष-पान के कारण नीलकंठ हो कर भी विष से अलिप्त है, उग्र होते हुए भी सौम्य है, अकिंचन होते हुए भी सर्वेशवर है। भयंकर विषधर  नाग और  सौम्य चंद्रमा उनके आभूषण है ,मस्तक में प्रलयकालीन अग्नि और सिर पर गंगाधारा उनका अनुपम श्रृंगार है। ये सभी विरोधी भाव हमें विलक्षण समन्वय की  शिक्षा देते हैं। इससे विश्व को सह -अस्तित्व अपनाने की शिक्षा मिलती है।

अतः हमें शिवरात्री के महापर्व को बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ समारोहपूर्वक मनाना चाहिए।
- धार्मिक ग्रंथों से प्रस्तुत

Friday, February 21, 2014

छाया बसंत
















आया बसंत, छाया बसंत,
गुनगुनाया निसर्ग
धरती ने ओढ़ी चुनर नई,
कहीं पीली कहीं चटक हरी,
बुलबुल चहकी कोयल कूकी,
कलियों ने घूँघट के पट खोले,
भौंरा हो मदमस्त, गुनगुनाता फिरता,
कभी कुंद तो कभी गुलाब का रस पीता
नन्ही तितली पंख पसारे उड़ती फिरती,
कभी लाल नीले पीले फूलों को तकती
फसलें हवा के झोंकों से,
लरज -लरज लहराती
चटकीली सोने सी चमचमाती धूप,
मन में उत्साह-उमंग जगाती
गुदगुदा जाता हर कवि मन को बसंत,
हर प्रेमी के मन में आस जगाता
प्रस्फुटित हो जाते सुर सारे,
प्रकृति स्वयं राग बसंत गुनगुनाती
आया बसंत छाया बसंत...
- साधना

Monday, February 17, 2014

जीवन की सफलता






















जीवन की सफलताओं का श्रेय हमेशा सही निर्णय लेने वालों को प्राप्त होता है। हर व्यक्ति एक सफल व कामयाब जीवन जीना चाहता है। सही निर्णय लेने कि क्षमता हर व्यक्ति में नहीं होती, पर हम छोटी-छोटी गलतियाँ जीवन में कई बार करते रहते है, ठोकरें खाते है ,कई बार गिरते है फिर सम्हलते है। इस तरह अपनी की हुई गलतियों से सबक सीख कर हम अपने जीवन को जीते हैं। अपनी ही गलतियों की  नींव पर सफल जीवन की इमारत का निर्माण करते है। इन्हीं  की हुई गलतियों से मिला सबक हमारे जीवन का अनुभव व जमा पूंजी माना जाता है। जीवन में जब भी कठिनाइयों का दौर आता है तब हो चुके अनुभवों के आधार पर हम सही निर्णय ले पाते हैं। 

अतः हमें जीवन के अच्छे-बुरे अनुभवों का सूक्ष्मता से निरीक्षण करते हुए जीवन को सफलता की राह पर अग्रसर करते हुए अपना जीवन सफल बनाना चाहिए।
- साधना

Saturday, February 8, 2014

नन्ही चिड़िया














एक काली, चमकीली छोटी सी, चुनमुन चिड़िया
कभी पत्तों पर गिरी पानी की बूंदों पर फिसलती
कभी फूलों में चोंच डाल उनका रस पीती
फिर हौले-हौले पारिजात के पत्तों को ध्यान से देखती
बड़ी मेहनत से कहीं से धागे, नारियल के रेशे लेकर आती
धीरे-धीरे बुनती अपने नन्हें बच्चों के लिए घरौंदा
रुई के नर्म बिछौनों पर देती अंडे
और इंतज़ार करती नाज़ुक परों से ढंके अपने बच्चों का
फिर उनके लिए चुन-चुन के लाती दाना-पानी
उन्हे हर विषम परिस्थिति में उड़ना सिखाती
इतनी छोटी सी होने पर भी
अपना माँ होने का हर कर्तव्य निभाती
इस निर्दयी संसार में रहकर उन्हे मुक्त गगन में
निर्भय होकर जीना सिखाती....
- साधना

Friday, January 24, 2014

प्रकृति का श्रंगार

Night sky

साँझ ढलने के बाद,
धीरे -धीरे नीलगगन में,
टिमटिमाने लगते रेशमी डोर से लटके हुए नटखट तारे,
उज्जवल-सा चाँद बिखेरता दूधिया सी रोशनी।
मखमली श्वेत सितारों से भरी चुनर ओढ़ कर,
स्वच्छ निर्मल चाँदनी में डूबती उतराती प्रकृति
करती नई सुबह का इंतजार।
- साधना 

Monday, January 6, 2014

मन की परतें


मेरे मन तू चल,
कभी तेज़-तेज़ कभी मंद-मंद,
कभी मंथर गति से चल।

तू रुकता, रुक जाता जीवन,
देह क्लांत सी हो जाती,
वाणी मौन हो जाती,
उठती शंका-कुशंका,
पर मेरे मन तू उदास न हो।

नभ में चमकते सूरज चंदा और सितारे,
समुद्र में उठने वाली लहरें...
खग-विहग सब के सब तुझे पुकारें।

तू अशांत न हो, तू क्लांत न हो,
तोड़ हर बंधन को,
बस तू बहता चल।

अविरल जल सा, अपनी गति से,
बस झरने सा, निर्झर हो,
झर झर बहता चल...।

- साधना